एम्स कर्मियों के ‘बुरे’ व्यवहार से त्रस्त हैं लोग
सेहतराग टीम
यूं तो पब्लिक डीलिंग वाले सारे सरकारी दफ्तरों में जनता के साथ किया जाने वाला बुरा व्यवहार आम लोग रोजाना ही झेलते हैं मगर चिकित्सा के पेशे से जुड़े लोगों से ये अपेक्षा की जाती है कि कम से कम वो लोगों के दुख को समझेंगे और सही तरीके से व्यवहार करेंगे। हालांकि सरकारी अस्पतालों में पहुंचते ही ये भावना हवा हो जाती है।
आम सरकारी अस्पतालों की तो बात ही जाने दें, देश में चिकित्सा सेवाओं की नाक ऊंची करने वाले दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के कर्मचारियों के व्यवहार से लोग त्रस्त हैं। इस साल फरवरी से अप्रैल के बीच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) आने वाले करीब 9,940 मरीजों में से 35 प्रतिशत लोगों का मानना था कि अस्पताल को लेकर उनके अंदर जो अंसतोष है उसकी ‘मुख्य वजह’ यहां के कर्मचारियों का व्यवहार था।
ये किसी निजी एजेंसी के आंकड़े नहीं हैं बल्कि खुद सरकार ने लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए जो प्रणाली विकसित की है उसी ने ये रिपोर्ट दी है। इसमें कहा गया है कि करीब 23 फीसदी मरीज एम्स में दी जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं से संतुष्ट नहीं रहे। उनमें से ज्यादातर ने आपात, सर्जरी, ओर्थेपेडिक, प्रसूति और स्त्री रोग विभागों की सेवाओं पर असंतोष जताया।
फीडबैक में कहा गया है, ‘मरीज के असंतोष की मुख्य वजह कर्मचारियों का व्यवहार (35 फीसदी) है जिसके बाद अन्य वजहें (34 फीसदी) हैं।’
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 2016 में शुरू की गई पहल ‘मेरा अस्पताल’ के तहत मरीजों से प्रतिक्रिया ली गई। इसमें कहा गया है कि इलाज की गुणवत्ता और इलाज का खर्च मरीजों के बीच असंतोष की अन्य वजहें (क्रमश: 13 प्रतिशत और 12 प्रतिशत) रहीं।
फीडबैक के अनुसार, 25 फीसदी मरीज ईएनटी विभाग की सेवाओं से खुश नहीं रहे। एम्स के ‘मेरा अस्पताल’ फीडबैक के लिए कुल 9,940 प्रतिक्रियाएं मिली।
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